Taatvik Satsang, Ahmedabad Ashram, 28-Apr-2008
सत्संग के कुछ मुख्य अंश:
* जैसे मरुभूमि में वृक्ष होना कठिन है, ऐसे ही जवानी में विवेक वैराग्य होना बहुत कठिन है;
राजा भगीरथ को युवा अवस्था में कैसे संसार से वैराग्य हुआ और अपने गुरु तीतल ऋषि की शरण में गये..
* संभोग (sex) में 3 चीज़ें नाश होती हैं: वीर्य, ओज, मज्जा;
ओज, तेज, प्रभाव - तीनों एक साथ नाश होते हैं;
वीर्य, ओज और मज्जा - तीनों बहुत कीमती चीज़ें हैं; इनकी रक्षा बुद्धि में भगवत प्रसाद पाने की ताकत लाएगा;
(हमारी) शादी कराई, अगर घर वाले जैसा चाहते ऐसे हम उनकी इच्छा पूरी रखते, तो हमारा ओज और मज्जा ऐसा रहता ही नहीं; तो आसुमल ही रहते (आत्म-साक्षात्कार नहीं होता);
* जैसे पतंगिया दिये में मजा लेने जाता है (और जल मरता है), ऐसे ही पतंगिया छाप मजा है संसार (के विषयों) का; जरा सा मजा, बदले में सजा बहुत ज्यादा...
* साक्षात्कार के बाद शोक टेंशन नहीं रहता; राजा भगीरथ ने पहले साक्षात्कार कर लिया;
हम (पूज्य बापूजी) पहले दुकान पर ही रहते और वेसा जीवन जीते, तो खप के मर जाते; लेकिन पहले साक्षात्कार कर लिया तो अब इतना (पसारा) है, पर कोई बंधन नहीं है;
तो पहले साक्षात्कार कर लेना चाहिए;
* मत करो वर्णन हर बेअंत है, क्या जाने वो कैसा है...
भगवान क्या हैं, भगवान ही जानते हैं; जिसका वरण करते हैं, स्वीकार करते हैं, उसके हृदय में अपना प्रागट्य कर देते हैं...
ईश्वर क्या है, कितनी भी व्याख्या करो, नहीं कर सकते पूरी...
* (ईश्वर प्राप्ति) कठिन नहीं है, (ईश्वर) दूर नहीं है..पराया नहीं है, परिश्रम से नहीं है;
संसार के लिये परिश्रम करो और छूटता है; भगवान के लिये परिश्रम भी नहीं है और छूटते भी नहीं हैं...
* यौवन से पहले 18 साल की उम्र में उद्दालक को विवेक हुआ; राजतिलक होने वाला था (लेकिन उसको ठुकरा दिया); मेरे को तो आत्म साक्षात्कार करना है (ऐसा दृढ़ निश्चय करके उसने राजपाट का त्याग कर दिया)...
* मेरे ऐसे दिन कब आयेंगे कि मेरा चित्त रूपी मेघ वासना रूपी वायु से रहित आत्म रूपी सुमेरु में स्थित होगा? ऐसी इच्छा करता है उद्दालक...
ऐसी इच्छा तुम अपने में भर लो बस, हम (पूज्य बापूजी) तैयार हैं; इच्छा करो तो ऐसी करो..
* ऐसे दिन कब आएंगे जब जगत के कर्मों को बालक की चेष्टा मानूँगा; इष्ट अनिष्ट की प्राप्ति में मेरे चित्त की वृत्ति चलायमान नहीं होगी...
आत्म पद में मेरी स्थिति हो जाएगी - ऐसे मेरे दिन कब आएंगे..
कब मैं उपशम (मन की परम शांति) को प्राप्त हूँगा... कब मैं अपना चेतन वपु पाकर शरीर को अशरीरवत देखूंगा...कब मेरे भीतर बाहर की सब कलना शांत हो जायेगी...
हे रामजी! ऐसा विचार करके उद्दालक अपने चित्त को ध्यान में लगाता...
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Yog Vashishtha Satsang - Sukh dukh ke prasangon mein chitt ko chalayemaan mat karo, sam raho...
Endearingly called 'Bapu ji'(Asaram Bapu Ji), His Holiness is a Self-Realized Saint from India. Pujya Asaram Bapu ji preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being; be it Hindu, Muslim, Christian, Sikh or anyone else. For more information, please visit -
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