सांसारिक रिश्ते-नाते जब तक शरीर है तब तक ही रहते हैं पर गुरु-शिष्य का रिश्ता शरीर छूटने के बाद भी बना रहता है जब तक कि शिष्य परमगति मुक्ति को प्राप्त न कर ले । क्योंकि इस संसार में केवल एक गुरु ही हैं जो अपने शिष्य के कर्म-बन्धनों को काटकर उसे भवसागर से पार लगाने की जिम्मेदारी लेते हैं । इन्हीं वचनों को यथार्थ करती है श्री विजयकृष्ण गोस्वामीजी की ये प्रेरणादायी कथा ।
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