Sant Shri Asaram Bapu Ji Satsang, Ahmedabad Ashram, 28-Apr-2009
सत्संग के कुछ मुख्य अंश:
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* वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! ज्ञानवान सर्वदा नमस्कार करने और पूजने योग्य है; जिस स्थान में ज्ञानवान बैठता है, उस स्थान को भी नमस्कार है...जिस जिह्वा से बोलता है, उस जिह्वा को भी नमस्कार है....जिस पर ज्ञानवान दृष्टि डालता है, उसको भी नमस्कार है; वह सब का आश्रय है...
* जैसा ज्ञानवान की दृष्टि से आनंद मिलता है, वैसा आनंद तप, दान और यज्ञ आदि कर्मों से भी नहीं मिलता...
* हे रामजी! जब तक अकृत्रिम आनंद न मिले, तब तक दृढ़ अभ्यास करें; उस अकृत्रिम आनंद को प्राप्त कराने वाला मैं गुरु हूँ;
पूज्य बापूजी: ऐसे दमदार गुरु हैं (वशिष्ठजी); ऐसा नहीं कि मुजाहिर में बस मत्था टेकते रहो; मंदिरों में, मस्जिदों में चक्कर काटते रहो...
नहीं...अकृत्रिम आनंद को प्राप्त कराने वाला मैं गुरु हूँ; और तुम भी सत्पात्र आज्ञाकारी शिष्य बनो;
* हे रामजी! जब संतों की संगति होती है, तब कल्याण होता है और अनात्मा में अहम् भाव छूट जाता है; और किसी प्रकार से शान्ति नहीं मिलती;
बालक के नाईं हमारे वचन नहीं हैं; हमारा कहना यथार्थ है क्योंकि हमको स्वरूप का स्पष्ट भान है;
* सब वासनायें त्याग कर अपने को अविनाशी जानो और आत्म सत्ता में स्थित हो;
यह सब जगत भी तुम्हारा ही रूप है; जब ऐसे आत्मा को जानोगे, तब शरीर के त्याग से भी कोई दुःख न रहेगा;
और शरीर के होते भी दुःख न होगा;
* हे रामजी! तू आत्मा की भावना कर, जिससे तेरे दुःख नष्ट हो जावें; इससे तू प्रकृत आचार को अंगीकार करता रहेगा, पर तुझे पाप-पुण्य का स्पर्श न होगा;
* विचार करके देखिये तो इस संसार में दुःख कहीं नहीं है;
अपना स्वरूप आनंद रूप है; एक प्रमाद से ही दुःख होता है, और किसी प्रकार दुःख नहीं होता;
यह सब जगत आत्म रूप है, और जब आत्म रूप है तो दुःख कैसे हो?
* हे रामजी! सब प्रकार से आनंद है, केवल भ्रान्ति से दुःख होता है;
पूज्य बापूजी: आत्म सुख मिलने के बाद फिर विकारी सुखों का आकर्षण नहीं रहता;
जब तक वह अकृत्रिम आनंद नहीं प्राप्त हुआ और उस पद में विश्राम नहीं पाया, तब तक शान्ति नहीं प्राप्त होती;
* जब वासना का क्षय होता है, तब बोध शेष रहता है;
पूज्य बापूजी: परमात्म शान्ति बड़ी तपस्या की उपलब्धि है; बड़े पुरुषार्थ का फल है परमात्म शान्ति;
परमात्म शान्ति में ले जाने वाला सतगुरु का ज्ञान और ध्यान मिले, तभी जीवन धन्य होता है;
* जीवों को आनंद आत्म विश्रांति के सिवाय न तपों से प्राप्त होता है, और न तीर्थों से प्राप्त होता है;
पूज्य बापूजी: तीर्थों में जा-जा कर थक के आ जाते हैं; फिल्मों में जा जा कर थक के आ जाते हैं, चरित्र हीन करके आ जाते हैं; विषय विकारों में अपने को सता सताकर थक जाते हैं; जिन्दगी पूरी हो जाती है...
कभी कबार सत्संगी महापुरुष मिलते हैं, आत्म विश्रांति मिलती है, तभी जीव को अपने जीवन का फल पाने का अवसर मिलता है;
तीरथ नहाये एक फल, संत मिले फल चार,
सतगुरु मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार...
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान,
सिर दीजे सतगुरु मिले, तो भी सस्ता जान...
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Chetichand Dhyan Yog Shivir Satsang...
Jab tak Ishvar ka saakshaatkaar na ho, tab tak seva aur saadhna ka dridh abhyaas karein...
Endearingly called 'Bapu ji'(Asaram Bapu Ji), His Holiness is a Self-Realized Saint from India. Pujya Asaram Bapu ji preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being; be it Hindu, Muslim, Christian, Sikh or anyone else. For more information, please visit -
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